पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक के निधन से उनके पैतृक गांव हिसावदा (बागपत) में शोक की लहर दौड़ गई। ग्रामीणों ने उन्हें बेबाक, ईमानदार और किसानों के पक्षधर नेता के रूप में याद किया। गांव में उनकी 300 साल पुरानी हवेली आज भी उनकी जड़ों की गवाही देती है।

उत्तर प्रदेश के बागपत ज़िले का हिसावदा गांव सोमवार को गहरे शोक में डूब गया, जब यहां पूर्व राज्यपाल और वरिष्ठ राजनेता सत्यपाल मलिक के निधन की खबर पहुंची। दिल्ली में 79 वर्ष की आयु में अंतिम सांस लेने वाले मलिक लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे थे। उनके निधन ने न केवल गांव को, बल्कि पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश को एक गहरी क्षति दी है।
उत्तर प्रदेश के बागपत ज़िले का हिसावदा गांव सोमवार को गहरे शोक में डूब गया, जब यहां पूर्व राज्यपाल और वरिष्ठ राजनेता सत्यपाल मलिक के निधन की खबर पहुंची। दिल्ली में 79 वर्ष की आयु में अंतिम सांस लेने वाले मलिक लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे थे। उनके निधन ने न केवल गांव को, बल्कि पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश को एक गहरी क्षति दी है।

गांव से शुरू हुआ सफर
सत्यपाल मलिक का जन्म और प्रारंभिक शिक्षा इसी गांव में हुई थी। प्राथमिक पाठशाला में पढ़ाई के बाद उन्होंने ढिकौली के एमजीएम इंटर कॉलेज से कक्षा 12 तक की पढ़ाई की। इसके बाद मेरठ कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल की। वे अक्सर साइकिल से गांव के मित्रों के साथ स्कूल जाया करते थे।

पहली राजनीतिक सफलता
मलिक का राजनीतिक करियर 1972 में शुरू हुआ, जब वे चौधरी चरण सिंह की पार्टी से बागपत विधानसभा सीट से विधायक चुने गए। यह उनके लंबे सार्वजनिक जीवन की पहली बड़ी सफलता थी। इसके बाद वे राज्यसभा सदस्य, केंद्रीय मंत्री और फिर बिहार, जम्मू-कश्मीर, गोवा व मेघालय के राज्यपाल बने।
बेबाक और स्पष्टवादी नेता
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, सत्यपाल मलिक को एक ऐसा नेता माना जाता है जिसने संवैधानिक पदों पर रहते हुए भी अपनी राय खुलकर रखी। वे किसानों के मुद्दों पर हमेशा मुखर रहे और कई बार केंद्र सरकार की नीतियों की आलोचना भी की।
राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर डॉ. अरविंद चौहान का कहना है— “सत्यपाल मलिक जैसे नेता भारतीय राजनीति में दुर्लभ हैं। उन्होंने संवैधानिक मर्यादा का पालन करते हुए भी जनता और किसानों की आवाज़ उठाने से कभी परहेज़ नहीं किया।”

गांव से अटूट रिश्ता
हालांकि उनका परिवार अब दिल्ली में रहता है, लेकिन हिसावदा से उनका जुड़ाव कभी नहीं टूटा। गांव में स्थित उनकी 300 साल पुरानी हवेली आज भी खड़ी है। फरवरी 2023 में वे सेवानिवृत्त होने के बाद गांव लौटे थे। उस दौरान उन्होंने चौपाल लगाई, गांववालों से मिले और पुरानी यादें साझा कीं।
गांव के बुजुर्गों के मुताबिक, वे हमेशा बेहद सादगी से गांव आते और हर किसी को पूरा सम्मान देते। वे बड़े पदों पर रहते हुए भी अपनी जड़ों और गांव की मिट्टी से जुड़े रहे।

📍 अंतिम संस्कार की तैयारी
सत्यपाल मलिक के निधन के बाद उनके बेटे देव कबीर मलिक और परिवार दिल्ली में मौजूद हैं। पारिवारिक सूत्रों के अनुसार, उनका अंतिम संस्कार दिल्ली में ही किया जाएगा। बागपत जिले में पंचायत और प्रशासन की ओर से श्रद्धांजलि सभाएं आयोजित की जा रही हैं।

सत्यपाल मलिक का जीवन इस बात का प्रमाण है कि ईमानदारी, बेबाकी और जनता से जुड़ाव किसी भी नेता की असली पहचान होती है। उनके निधन से जहां भारतीय राजनीति ने एक मुखर और संवेदनशील नेता खो दिया, वहीं हिसावदा गांव ने अपना सच्चा सपूत खो दिया है।