15 अगस्त पर पुरानी दिल्ली में पतंगबाज़ी की परंपरा का असली राज

हर साल 15 अगस्त को पुरानी दिल्ली का आसमान रंग-बिरंगी पतंगों से भर जाता है। लेकिन इसके पीछे सिर्फ़ एक त्योहार नहीं, बल्कि आज़ादी, भाईचारे और उत्सव की गहरी परंपरा छिपी है। ऐतिहासिक तौर पर पतंगबाज़ी को स्वतंत्रता और खुली सोच के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। यह दिन न सिर्फ़ देशभक्ति बल्कि समुदायों को जोड़ने का भी माध्यम बन चुका है।

15 अगस्त पर पुरानी दिल्ली में पतंगबाज़ी की परंपरा का असली राज

नई दिल्ली | 15 अगस्त 2025 — राजधानी के पुराने इलाकों में हर साल स्वतंत्रता दिवस पर आसमान में रंग-बिरंगी पतंगों की बहार देखने को मिलती है। लाल किले के आस-पास और चांदनी चौक की संकरी गलियों से लेकर दरियागंज और बल्लीमारान तक, 15 अगस्त को पतंग उड़ाना एक रोमांचक परंपरा बन चुका है।

इतिहास से जुड़ा संबंध

इतिहासकार बताते हैं कि भारत की आज़ादी के शुरुआती वर्षों में 15 अगस्त के दिन पतंग उड़ाना आज़ादी के जश्न का प्रतीक बन गया। नीले आसमान में ऊंची उड़ान भरती पतंगें उस स्वतंत्रता का रूपक थीं, जिसके लिए लोगों ने लंबे संघर्ष किए। धीरे-धीरे यह प्रथा पुरानी दिल्ली की सांस्कृतिक पहचान बन गई।

भाईचारे का संदेश

इस दिन न सिर्फ़ बच्चे और युवा, बल्कि बुजुर्ग भी पतंगबाज़ी में हिस्सा लेते हैं। छतों पर जमा होकर लोग एक-दूसरे की पतंग काटने का मज़ा लेते हैं, लेकिन इस प्रतिस्पर्धा में भी एक दोस्ताना माहौल रहता है। पतंगबाज़ी पुरानी दिल्ली के लिए सिर्फ़ एक खेल नहीं, बल्कि आपसी मेलजोल और भाईचारे का प्रतीक है।

आज का नज़ारा

आज भी लाल किले से प्रधानमंत्री का भाषण खत्म होते ही छतों पर पतंगें उड़ने लगती हैं। आसमान में “भारत माता की जय” और “वंदे मातरम” के नारों के बीच, रंग-बिरंगी पतंगें देशभक्ति और उत्सव का माहौल और गहरा कर देती हैं। पूरी खबर देखने के लिए वीडियो पर क्लिक करें।