मालेगांव ब्लास्ट केस: सभी आरोपी बरी, पूर्व सांसद ने उठाए सवाल

2008 के मालेगांव धमाके में सभी आरोपियों की रिहाई पर पूर्व सांसद मोहम्मद अदीब ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने इसे न्यायपालिका की साख पर सवाल बताते हुए सरकार की चुप्पी और पक्षपातपूर्ण रवैये पर नाराजगी जताई।

मालेगांव ब्लास्ट केस: सभी आरोपी बरी, पूर्व सांसद मोहम्मद अदीब ने उठाए न्याय व्यवस्था पर सवाल

नई दिल्ली, 2 अगस्त 2025 | 2008 के मालेगांव बम धमाके मामले में विशेष एनआईए अदालत द्वारा सभी आरोपियों को बरी किए जाने के फैसले ने देश की न्याय प्रणाली और जांच एजेंसियों पर एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं।
पूर्व राज्यसभा सांसद मोहम्मद अदीब ने इस फैसले को “न्याय का पतन” बताते हुए गहरी निराशा जताई है।

16 साल बाद भी नहीं मिला इंसाफ़?

29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव में हुए सिलसिलेवार धमाकों में 6 लोगों की मौत हो गई थी और 100 से अधिक घायल हुए थे। इस मामले में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित सहित कई लोगों को आरोपी बनाया गया था। मामला राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को सौंपा गया, जिसने आतंकवाद की साजिश का दावा किया।

लेकिन 16 साल की लंबी सुनवाई के बाद कोर्ट ने कहा कि आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त पुख़्ता सबूत नहीं हैं। कई गवाह अपने बयान से मुकर गए और जांच में तकनीकी खामियाँ पाई गईं।

मोहम्मद अदीब का आरोप  “न्याय एकतरफा होता जा रहा है”

India First Reports से विशेष बातचीत में पूर्व सांसद मोहम्मद अदीब ने फैसले पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा:

“जिस फैसले से पीड़ितों को इंसाफ़ मिलना चाहिए था, वो अब उनके ज़ख्मों पर नमक बन गया है। मुझे बेहद अफ़सोस है कि इतने सारे सबूतों और गवाहियों के बावजूद आरोपी छूट गए।”

उन्होंने सवाल उठाया कि जब मुंबई लोकल ट्रेन ब्लास्ट केस में हाईकोर्ट के फैसले को सरकार ने तत्काल सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, तो मालेगांव जैसे मामले में यह तत्परता क्यों नहीं दिखाई गई?

“अगर जांच एजेंसियाँ सरकारों के दबाव में काम करेंगी तो फिर जनता न्याय की उम्मीद किससे करे?” — उन्होंने कहा।

“आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता”

गृह मंत्री के उस पुराने बयान पर भी अदीब ने आपत्ति जताई जिसमें कहा गया था — “हिंदू आतंकी हो ही नहीं सकता।”
उन्होंने कटाक्ष करते हुए पूछा:

“क्या नाथूराम गोडसे हिंदू नहीं था? क्या नक्सली, खालिस्तानी या एलटीटीई जैसे आतंकी संगठन धार्मिक पहचान से परे थे?”

अदीब ने स्पष्ट कहा कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, लेकिन राजनीति ने धर्म और आतंक को जोड़कर समाज को गहराई से बाँट दिया है।

आगे की राह — सुप्रीम कोर्ट की अपील की उम्मीद

पूर्व सांसद ने उम्मीद जताई कि इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाएगी और पीड़ित परिवारों को इंसाफ़ मिलेगा। उन्होंने यह भी बताया कि यदि सरकार चुप रही, तो Indian for Muslims Rights संगठन स्वयं कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगा।

“अगर हर बात को हिंदू-मुसलमान के चश्मे से देखा गया, तो यह देश सामाजिक दरार और अविश्वास की खाई में गिर जाएगा।”

स्थिति अभी क्या है?

फैसले के बाद अब तक केंद्र सरकार या NIA की ओर से सुप्रीम कोर्ट में अपील की कोई आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है। लेकिन पीड़ित परिवारों और मानवाधिकार संगठनों की नजर अब शीर्ष अदालत की संभावित सुनवाई और उच्च स्तर की पुनर्विचार प्रक्रिया पर टिकी है।